कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः ।
जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥ ५१ ॥
जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥ ५१ ॥
इस तरह भगवद्भक्ति में लगे रहकर बड़े-बड़े ऋषि, मुनि अथवा भक्तगण अपने आपको इस भौतिक संसार में कर्म के फलों से मुक्त कर लेते हैं। इस प्रकार वे जन्म-मृत्यु के चक्र से छूट जाते हैं और भगवान के पास जाकर उस अवस्था को प्राप्त करते हैं, जो समस्त दुखों से परे है।
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कर स्वीकार भगवद् भक्ति का पथ
ऋषि-मुनियों ने अपना उद्धार किया।
मुक्त कर स्वयं को कर्म फल मोह से
भक्तों ने भव बंधन को पार किया।।
जन्म-मृत्यु के अनवरत चक्र से छूट
जीवन के परम लक्ष्य को पा जाते हैं।
जीवन के बाद भगवद धाम जाकर
वे निज स्वरूप का परम पद पाते हैं।।
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