तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः ।
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥ २८ ॥
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥ २८ ॥
हे महाबाहो! भक्तिभावमय कर्म तथा सकाम कर्म के भेद को भलीभाँति जानते हुए जो परम सत्य को जानने वाला है, वह कभी भी अपने आपको इंद्रियों में तथा इन्द्रियतृप्ति में नही लगाता।
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परंतु हे महाबाहु! जिस व्यक्ति ने भी
प्राप्त कर लिया परम तत्त्व का ज्ञान।
जिसे पता निष्काम कर्म के विषय में
जिसे सकाम के बंधन का भी है भान।।
ऐसा मनुष्य तो सदा ही विषयों से
स्वयं व इंद्रियों को दूर ही है रखता।
संयमित रहता है जीवन में अपने वह
इन्द्रियतृप्ति में कभी भी नही फँसता।।
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