यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः ।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥ ६० ॥
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥ ६० ॥
हे अर्जुन! इंद्रियाँ इतनी प्रबल तथा वेगवान हैं कि उस विवेकी पुरुष के मन को भी बलपूर्वक हर लेती हैं, जो उन्हें वश में करने का प्रयत्न करता है।
************************************************
हे अर्जुन! जीव की चंचल इंद्रियाँ
बड़ी ही प्रबल व वेगवती होती हैं।
मन को सदा विषयों में भटकाती
औ बुद्धि को भ्रमित करती रहती हैं।।
कोई विवेकी पुरुष करे प्रयास कि
इन इंद्रियों को अपने वश में कर ले।
तो उससे पहले ये बलवती इंद्रियाँ
उसके मन को ही बलपूर्वक हर ले।।
No comments:
Post a Comment