Thursday, October 13, 2016

अध्याय-2, श्लोक-39

एषा तेऽभिहिता साङ्‍ख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां श्रृणु ।
बुद्ध्‌या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि ॥ ३९ ॥
यहाँ मैंने वैश्लेषिक अध्ययन (सांख्य) द्वारा इस ज्ञान का वर्णन किया है। अब निष्काम भाव से कर्म करना बता रहा हूँ, उसे सुनो। हे पृथापुत्र! तुम यदि ऐसे ज्ञान से कर्म करोगे तो तुम कर्मों के बंधन से अपने को मुक्त कर सकते हो।
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हे पार्थ! अब तक तो मैंने तुम्हें 
सांख्य योग का ज्ञान दिया है।
अब सुनो निष्काम कर्म योग ने  
इस विषय  में क्या  कहा है।।

समझकर निष्काम कर्म भाव को 
जब तुम अपना कार्य  करते हो ।
उस स्थिति में सदा ही तुम अपने 
कर्म के बंधन से मुक्त रहते हो।।

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