या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥ ६९ ॥
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥ ६९ ॥
जो सब जीवों के लिए रात्रि है, वह आत्मसंयमी के जागने का समय है और जो समस्त जीवों के जागने का समय है वह आत्मनिरीक्षक मुनि के लिए रात्रि है।
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रात के समय जब सारा संसार
स्वप्न लोक में समाया रहता है।
आत्म संयमी मनुष्य उस समय
आत्म-साक्षात्कार हेतु जगता है।।
सांसारिक काम में लगने को जब
समस्त प्राणी नींद से जगता है।
वह समय स्थिर प्रज्ञ मुनि को तो
रात्रि के समान अँधेरा लगता है।।
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