Thursday, October 13, 2016

अध्याय-2, श्लोक-38

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय  युज्यस्व नैवं  पापमवाप्स्यसि ॥ ३८ ॥ 
तुम सुख या दुःख, हानि या लाभ, विजय या पराजय का विचार किए बिना युद्ध के लिए युद्ध करो। ऐसा करने पर तुम्हें कोई पाप नही लगेगा।
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निज सुख-दुःख से ऊपर उठ कर 
हानि-लाभ की परवाह बिना किए।
जय व पराजय की चिंता छोड़कर 
युद्ध करो पार्थ सिर्फ़ युद्ध के लिए।।

धर्म की रक्षा हेतु तुम युद्ध कर रहे 
यही कर्त्तव्य समझकर पालन करो।
कोई पाप नही लगेगा तुम्हें अगर 
निर्लिप्त अवस्था को हृदय में धरो।।

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