Saturday, October 22, 2016

अध्याय-3, श्लोक-8

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः ॥ ८ ॥
अपना नियत कर्म करो, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है। कर्म के बिना तो शरीर-निर्वाह भी नहीं हो सकता।
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हे अर्जुन! तुम वह नियत कर्म करो
जिन्हें करने का दायित्व है तुम्हारा।
बिना काम बेकार बैठे रहने से श्रेष्ठ   
है व्यस्त रहना निज कर्म के द्वारा।।

बिना कर्म किए कोई कैसे रह सकता 
यह तो मानव मात्र के लिए है ज़रूरी।
कर्म न करे अगर कोई तो कैसे करेगा 
अपने जीवन की आवश्यकताएँ पूरी।।

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