Tuesday, October 18, 2016

अध्याय-2, श्लोक-65

प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते ।
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते ॥ ६५ ॥
इस प्रकार भगवान की कृपा प्राप्त होने से सम्पूर्ण दुःखों का अन्त हो जाता है तब उस प्रसन्न-चित्त मन वाले मनुष्य की बुद्धि शीघ्र ही एक परमात्मा में पूर्ण रूप से स्थिर हो जाती है।
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भगवान के अहैतुकी कृपा जब 
मानव के ऊपर ऐसे बरसती है।
सारे क्लेश उसके मिट जाते हैं 
दुःख उससे अब दूर ही रहती है।।

प्रसन्नता उसके जीवन में फैलती   
वह सदा प्रसन्न चित्त ही  रहता है।
बुद्धि पूर्ण रूप से प्रभु में स्थिर है  
अब संसार में नही वह  बहता है।।

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