Monday, October 17, 2016

अध्याय-2, श्लोक-50

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते ।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्‌ ॥ ५० ॥
भक्ति में संलग्न मनुष्य इस जीवन में ही अच्छे तथा बुरे कार्यों से अपने को मुक्त कर लेता है। अतः योग के लिए प्रयत्न करो क्योंकि सारा कार्य-कौशल यही है।
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भक्ति की पद्धति को अपनाकर 
मनुष्य पाप-पुण्य से छूट जाता है।
इस संसार में रहकर भी वो व्यक्ति 
यहाँ के बंधनों में बँध नहीं पाता है।।

त्याग कर सम असम दृष्टि अपनी 
बुद्धि योग की समता को अपनाओ।
कुशलता पूर्वक सम्पन्न होंगे कार्य 
अपने प्रयास में तुम दृढ़ हो जाओ।।

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