Wednesday, October 12, 2016

अध्याय-2, श्लोक-32

यदृच्छया चोपपन्नां स्वर्गद्वारमपावृतम्‌ ।
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम्‌ ॥ ३२ ॥ 
हे पार्थ! वे क्षत्रिय सुखी हैं जिन्हें ऐसे युद्ध के अवसर अपने आप प्राप्त होते हैं जिससे उनके लिए स्वर्गलोक के द्वार खुल जाते हैं।
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कितने सुखी होते हैं क्षत्रिय योद्धा 
जो धर्म के लिए युद्ध कर सकते हैं।
हे पृथापुत्र! है ये सौभाग्य तुम्हारा 
ऐसे अवसर सबको कहाँ  मिलते हैं।।

धर्म के लिए लड़ते-लड़ते जो रण में 
अपने प्राणों की आहुति चढ़ा देते हैं।
उनके लिए तो स्वर्ग लोक के द्वार 
बिना प्रयत्न अपने आप खुलते हैं।।

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