ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम् ।
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ॥ ३२ ॥
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः ॥ ३२ ॥
किंतु जो ईर्ष्यावश इन उपदेशों की उपेक्षा करते हैं और इनका पालन नही करते उन्हें समस्त ज्ञान से रहित, दिग्भ्रमित तथा सिद्धि के प्रयासों में नष्ट-भ्रष्ट समझना चाहिए।
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किंतु कुछ लोगों को ईर्ष्यावश
ये उपदेश मन को नही भाते हैं।
इन आदेशों की करके उपेक्षा वे
अपने अलग ही नियम बनाते हैं।।
ऐसे लोग होते हैं सदा ही भ्रमित
उन्हें समस्त ज्ञान से रहित जानें।
सिद्धि के लिए जो करते प्रयास
उन प्रयासों में भी नष्ट-भ्रष्ट माने।।
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