दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः ।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥ ५६ ॥
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥ ५६ ॥
जो त्रय तापों के होने पर भी मन में विचलित नहीं होता अथवा सुख में प्रसन्न नहीं होता और जो आसक्ति, भय तथा क्रोध से मुक्त है, वह स्थिर मन वाला मुनि कहलाता है।
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दुःख की घड़ियाँ भी जिनको
विचलित नही कर पाती है।
सुख प्राप्ति की प्रसन्नता भी
जिनके भीतर से मिट जाती है।।
किसी से आसक्ति नही रहती
भय क्रोध से ऊपर उठ जाते हैं।
मन होता जिनका शांत व स्थिर
ऐसे व्यक्ति ही मुनि कहलाते हैं।।
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