Wednesday, October 12, 2016

अध्याय-2, श्लोक-30

देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत ।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥ ३० ॥
हे भरतवंशी! शरीर में रहनेवाले (देही) का कभी भी वध नहीं किया जा सकता। अतः तुम्हें किसी भी जीव के लिए शोक करने की आवश्यकता नहीं है।
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हे भरतवंशी! समझ लो तुम ये बात 
शरीर और आत्मा अलग-अलग है ।
रहे जो शरीर के भीतर वो है आत्मा 
जिसका वध कभी भी नही संभव है।।

नष्ट हो जाता है ये  नाशवान शरीर 
पर आत्मा तो अजर-अमर है रहती।
अजर-अमर के लिए हम शोक करें  
बुद्धिमानी तो यह कभी नही कहती।।

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