देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत ।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥ ३० ॥
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥ ३० ॥
हे भरतवंशी! शरीर में रहनेवाले (देही) का कभी भी वध नहीं किया जा सकता। अतः तुम्हें किसी भी जीव के लिए शोक करने की आवश्यकता नहीं है।
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हे भरतवंशी! समझ लो तुम ये बात
शरीर और आत्मा अलग-अलग है ।
रहे जो शरीर के भीतर वो है आत्मा
जिसका वध कभी भी नही संभव है।।
नष्ट हो जाता है ये नाशवान शरीर
पर आत्मा तो अजर-अमर है रहती।
अजर-अमर के लिए हम शोक करें
बुद्धिमानी तो यह कभी नही कहती।।
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