Sunday, October 23, 2016

अध्याय-3, श्लोक-14

अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः ।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥ १४ ॥
सारे प्राणी अन्न पर आश्रित हैं, जो वर्षा से उत्पन्न होता है। वर्षा यज्ञ सम्पन्न करने से होती है और यज्ञ नियत कर्मों से उत्पन्न होता है।
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इस जगत में है जितने भी प्राणी 
वे सब अन्न पर आश्रित होते हैं।
अन्न की उत्पत्ति होती तब जब 
बादल समय पर वर्षा करते हैं।।

यज्ञ का सम्पन्न करना ज़रूरी है
समय पर वर्षा के होने के लिए।
यज्ञ की उत्पत्ति होती है जब हम 
दृढ़ हो नियत कर्म करने के लिए।।

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