Saturday, October 22, 2016

अध्याय-3, श्लोक-11

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः ।
परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ॥ ११ ॥
यज्ञों के द्वारा प्रसन्न होकर देवता तुम्हें भी प्रसन्न करेंगे और इस तरह मनुष्यों तथा देवताओं के मध्य सहयोग से सबों को सम्पन्नता प्राप्त होगी।
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जब तुम यज्ञ करोगे तो उससे
देवाताओं को प्रसन्नता होगी।
प्रसन्न देवताओं से फिर तुम्हें 
हर उन्नति में सहायता मिलेगी।।

जब मनुष्य और देवता दोनों ही   
साथ में  मिलकर कार्य करते हैं।
तब दोनों ही आपसी सहयोग से 
परम कल्याण को प्राप्त करते हैं।।

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