Thursday, October 13, 2016

अध्याय-2, श्लोक-36

अवाच्यवादांश्च बहून्‌ वदिष्यन्ति तवाहिताः ।
निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम्‌ ॥ ३६ ॥
तुम्हारे शत्रु अनेक प्रकार के कटु शब्दों से तुम्हारा वर्णन करेंगे और तुम्हारी सामर्थ्य का उपहास करेंगे। तुम्हारे लिए इससे दुखदायी और क्या हो सकता है?
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समझेगा न कोई तुमारी दया 
उल्टा सब मिल उपहास करेंगे।
रूष्ट वाणी और कटु शब्दों से 
वीरता पर तुम्हारी व्यंग करेंगे।।

एक सम्मानित व्यक्ति के लिए 
सम्मान खोना दुखदायी होता।
अपमान के ऐसे क्षण से अधिक 
पीड़ादायक कुछ और न होता।।

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