यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति ।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ॥ ५२ ॥
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ॥ ५२ ॥
जब तुम्हारी बुद्धि इस मोह रूपी सघन वन को पार कर जाएगी तो तुम सुने हुए तथा सुनने योग्य सब के प्रति अन्यमनस्क हो जाओगे।
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संसार का मोह एक घना-सा वन है
उसे पार करना जीवन की चुनौती।
बिना भटके इसे जो पार कर जाए
वही बुद्धि सर्वोत्तम बुद्धि है होती।।
पार करके इस जंगल को मनुष्य
सब मोह से अनासक्त हो जाता है।
सुनी हुई बातें, सुनने योग्य विषय
कोई उसे विचलित न कर पाता है।।
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