धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च।
यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् ॥ ३८ ॥
यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् ॥ ३८ ॥
जिस प्रकार अग्नि धुएँ से, दर्पण धूल से अथवा भ्रूण गर्भाशय से आवृत्त रहता है, उसी प्रकार जीवात्मा इस काम की विभिन्न मात्राओं से आवृत्त रहता है।
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जैसे अग्नि हमें दिखायी न देती
जब धुएँ का बादल छा जाता।
परिबिम्ब दर्पण में दिखता नही
जब धूल से दर्पण भर जाता।
गर्भ जैसे गर्भाशय आवृत्त करती
वैसा ही काम का आवरण होता।
कम-ज़्यादा हर जीव के ज्ञान को
इस काम का आवरण ढक देता ।।
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