Monday, October 31, 2016

अध्याय-3, श्लोक-36

अर्जुन उवाचः
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पुरुषः ।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः ॥ ३६ ॥
अर्जुन ने कहा-हे वृष्णिवंशी! मनुष्य न चाहते हुए भी पापकर्मों के लिए प्रेरित क्यों होता है? ऐसा लगता है कि उसे बलपूर्वक उनमें लगाया जा रहा हो।
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अर्जुन ने कहा वृष्णिवंशी प्रभु से 
कि क्यों ये पाप होते हैं हमसे?
न चाहते हुए भी मन ये हमारा 
पाप हेतु प्रेरित होता है किससे?

ऐसा लगता है जैसे कि कोई हमें 
बल पूर्वक अपनी ओर खींच रहा।
पाप में प्रवृत्त होते जा रहे ज़बरन 
किए जा रहे किसी और का कहा।।

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