कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः ।
लोकसंग्रहमेवापि सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि ॥ २० ॥
लोकसंग्रहमेवापि सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि ॥ २० ॥
जनक जैसे राजाओं ने केवल नियत कर्मों को करने से ही सिद्धि प्राप्त की। अतः सामान्य जनों को शिक्षित करने की दृष्टि से तुम्हें कर्म करना चाहिए।
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कर्त्तव्यों का अपने पालन करके भी
परम सिद्धि को पाया जा सकता है।
राजा जनक जैसे मानवों का चरित्र
इस बात का हमें उदाहरण देता है।।
इसलिए हे अर्जुन! तुम भी अपने
नियत कर्त्तव्य का ही पालन करो।
सामान्य लोगों के मार्गदर्शन हेतु
सामान्य लोगों के मार्गदर्शन हेतु
अपने क्षत्रिय धर्म को धारण करो।।
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