Wednesday, October 26, 2016

अध्याय-3, श्लोक-27

प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः ।
अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते ॥ २७ ॥
जीवात्मा अहंकार के प्रभाव से मोहग्रस्त होकर अपने आपको समस्त कर्मों का कर्ता मान बैठता है, जब कि वास्तव में वे प्रकृति के तीनों गुणों द्वारा सम्पन्न किए जाते हैं।
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अहंकार का प्रभाव मनुष्य को 
इस तरह से मोहित कर देता है।
वह स्वयं को समस्त कार्यों को  
करनेवाला कर्ता मानने लगता है।।

वास्तविकता तो यह है कि मनुष्य 
प्रकृति के गुणों को बस अपनाते है।
प्रकृति के उन्ही गुणों के द्वारा ही 
समस्त कार्य संपन्न किया जाते हैं।।

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