Friday, October 7, 2016

अध्याय-2, श्लोक-19

य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्‌ ।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ॥ १९ ॥
जो इस जीवात्मा को मारनेवाला समझता है तथा जो इसे मरा हुआ समझता है, वे दोनों ही अज्ञानी हैं, क्योंकि आत्मा न तो मारता है और न मारा जाता है।
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कोई अगर समझता है ऐसा 
कि आत्मा ने किसी को मारा।
या फिर ये समझता कोई कि 
मारा गया ये किसी के द्वारा।।

ऐसी समझ रखनेवाला व्यक्ति 
तो ज्ञान से विमुख कहलाता है।
क्योंकि आत्मा किसी को न मारे 
नही कभी स्वयं मारा जाता है।।



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