Thursday, October 13, 2016

अध्याय-2, श्लोक-41

व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन ।
बहुशाका ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्‌ ॥ ४१ ॥
जो इस मार्ग पर चलते हैं वे प्रयोजन में दृढ़ रहते हैं उनका लक्ष्य भी एक होता है। हे कुरुनंदन! जो दृढ़प्रतिज्ञ नहीं है उनकी बुद्धि अनेक शाखाओं में विभक्त रहती है।
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ठाना जिसने इस पथ पर  चलना
प्रयोजन उनका सदा दृढ़ है रहता।
बुद्धि उनको विचलित नही करती 
न ही लक्ष्य उनका हरदिन बदलता।।

पर जो अपने संकल्प में दृढ़ नही है
वे लक्ष्य को लेकर भ्रमित ही  रहते।
बुद्धि उनकी बँटी होती शाखाओं में
सही मार्ग का वे निर्णय नही करते।।

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