Tuesday, October 11, 2016

अध्याय-2, श्लोक-28

अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत ।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना ॥ २८॥
सारे जीव प्रारम्भ में अव्यक्त रहते हैं, मध्य अवस्था में व्यक्त होते हैं और विनष्ट होने पर पुनः अव्यक्त हो जाते हैं। अतः शोक करने की क्या आवश्यकता है?
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जब तक न होता जन्म जीव का 
तब तक तो वह नही दिखता है।
मृत्यु जब वरण कर लेती उसे 
तब फिर वह छुप ही जाता है।।

बीच की थोड़ी-सी जो है अवधि 
बस उसमें ही जीव प्रकट होता है।
हे भरतवंशी! फिर ऐसी स्थिति में 
शोक की क्या आवश्यकता है।।

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