Wednesday, October 26, 2016

अध्याय-3, श्लोक-25

सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत ।
कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम्‌ ॥ २५ ॥
जिस प्रकार अज्ञानी जन फल की आसक्ति से काम करते हैं, उसी तरह विद्वान जनों को चाहिए कि वे लोगों को उचित पथ पर ले जाने के लिए अनासक्त रहकर कार्य करें।
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हे भरतवंशी! बड़े ही दृढ़ लगन से 
अज्ञानी मनुष्य अपने कर्म करते हैं।
कर्म फल से बड़ा मोह होता उन्हें 
हर पल फल की चिंता में रहते हैं।।

उसी लगन से ज्ञानी मनुष्यों को भी 
संसार-कल्याण में लगना चाहिए।
बिना किसी फल की इच्छा किए 
अनासक्त हो कर्म करना चाहिए।।

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