Monday, October 24, 2016

अध्याय-3, श्लोक-15

कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्‌ ।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्‌ ॥ १५ ॥
वेदों में नियमित कर्मों का विधान है और ये वेद साक्षात् श्रीभगवान (परब्रह्म) से प्रकट हुए हैं। फलतः सर्वव्यापी ब्रह्म यज्ञकर्मों में सदा स्थित रहता है।
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वेदों बताते हैं हमारे नियत कर्म 
और उन्हें पूरा करने का विधान।।
वेद लौकिक पुस्तक मात्र नही 
है साक्षात् प्रभु से उत्पन्न ज्ञान।।

वेदों का अनुसरण करते हुए ही 
ज्ञानी यज्ञों  को संपन्न करते हैं।
सर्वव्यापी अविनाशी परमात्मा 
इन यज्ञों में सदा ही बसते हैं।।

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