ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते ।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥ ६२ ॥
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥ ६२ ॥
इन्द्रियविषयों का चिंतन करते हुए मनुष्य की उनमें आसक्ति हो जाती है और ऐसी आसक्ति से काम उत्पन्न होता है और फिर काम से क्रोध प्रकट होता है।
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इन्द्रिय विषयों का चिंतन करने से
मनुष्यको उनमें आसक्ति हो जाती।
फिर यह विषयों की आसक्ति उसे
उन्हें पाने के लिए भी है उकसाती।।
मनुष्यको उनमें आसक्ति हो जाती।
फिर यह विषयों की आसक्ति उसे
उन्हें पाने के लिए भी है उकसाती।।
हर हाल में उसे पाना ही चाहे मनुष्य
जब विषय की कामना उत्पन्न होती।
जब पूरी नही हो पाती इच्छा उसकी
तो यही क्रोध को आगे जन्म है देती।।
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