Wednesday, October 26, 2016

अध्याय-3, श्लोक-26

न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङि्गनाम्‌ ।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन्‌ ॥ २६ ॥
विद्वान व्यक्ति को चाहिए कि वह सकाम कर्मों में आसक्त अज्ञानी पुरुषों को कर्म करने से रोके नही ताकि उनके मन विचलित न हों। अपितु भक्तिभाव से कर्म करते हुए वह उन्हें सभी प्रकार के कार्यों में लगाये।
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विद्वान व्यक्तियों का दायित्व है 
कि मोहित मनुष्यों को समझाए।
अपने सही उदाहरण से उनको
निष्काम कर्म के पथ पर लाए।।

उन्हें कर्म करने से रोके नही वरना 
उनकी बुद्धि भ्रमित हो जाएगी।
उनका कर्म-फल से जो मोह है 
वह आसक्ति धीरे-धीरे जाएगी।।

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