न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् ।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥ ५ ॥
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥ ५ ॥
प्रत्येक व्यक्ति को प्रकृति से अर्जित गुणों के अनुसार विवश होकर कर्म करना पड़ता है, अतः कोई भी एक क्षणभर के लिए भी बिना कर्म किए नही रह सकता।
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इस प्रकृति के अपने नियम हैं
जो हर व्यक्ति पर लागू होते हैं।
प्रकृति के तीन गुण करे संचालन
जो भी कर्म हम जग में करते हैं।।
क्षण भर को भी कोई इस जग में
कर्म किए बिना नही रह सकता।
प्रकृति के गुणों से होकर विवश
हरकिसी को कर्म करना ही पड़ता।।
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