Sunday, October 16, 2016

अध्याय-2, श्लोक-47

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥ ४७ ॥
तुम्हें अपना कर्म करने का अधिकार है, किंतु कर्म के फलों के तुम अधिकारी नहीं हो। तुम न तो कभी अपने आपको अपने कर्मों के फलों का कारण मानो, न ही कर्म न करने में कभी आसक्त होओ।
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कर्म करने का मिला अधिकार तुम्हें 
बस तुम उसका ही सदुपयोग करो।
जिस पर तुम्हारा अधिकार ही नही 
उस फल की चिंता में न व्यर्थ पड़ो।।

फल का स्वयं को कारण न मानो 
न ही उचित कर्मों से लो विरक्ति।
अपने कर्त्तव्य का तुम करो निर्वाहन 
त्याग कर सारी अनुचित आसक्ति।।

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