रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन् ।
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति ॥ ६४ ॥
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति ॥ ६४ ॥
किंतु समस्त राग तथा द्वेष से मुक्त एवं अपनी इंद्रियों को संयम द्वारा वश में करने में समर्थ व्यक्ति भगवान की पूर्ण कृपा प्राप्त कर सकता है।
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लेकिन जो समस्त राग और द्वेष से
मुक्त हुआ निर्मल मन का होता है।
इंद्रियों को अपनी संयमित कर सके
जिसके अंदर इतना सामर्थ्य होता है ।।
वह निश्छ्ल हृदय वाला व्यक्ति तो
भगवान को अतिशय प्रिय है लगता।
इसी धरा धाम पर रहते हुए भी वह
प्रभु की पूर्ण कृपा प्राप्त है करता।।
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