Tuesday, October 18, 2016

अध्याय-2, श्लोक-68

तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥ ६८ ॥
अतः हे महाबाहु! जिस पुरुष की इंद्रियाँ अपने-अपने विषयों से सब प्रकार से विरत होकर उसके वश में हैं, उसी की बुद्धि निस्सन्देह स्थिर है।
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इंद्रियों के इतने विषय जग में 
जिनपर वह मोहित होती रहती।
पर कुछ ऐसे भी पुरुष भी होते 
जिनकी इंद्रियाँ वश में है होती।।

उनके विषयों से हटा इंद्रियों को 
जो उन्हें अपने वश में रख पाते हैं।
हे महाबाहु! ऐसे संयमी पुरुष ही 
जग में स्थिर बुद्धि के कहलाते हैं।।

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