Tuesday, October 25, 2016

अध्याय-3, श्लोक-22

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन ।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ॥ २२ ॥
हे पृथापुत्र! तीनों लोकों में मेरे लिए कोई भी कर्म नियत नहीं है, न मुझे किसी वस्तु का अभाव है और न आवश्यकता ही है। तो भी मैं नियत कर्म करने में तत्पर रहता हूँ।
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हे पार्थ! तीनों लोकों में मेरे किए 
करने को कुछ भी तो नही शेष है।
कोई नियत कर्म नही निर्धारित है  
न ही जीवन में मेरे कोई क्लेश है।।

न अभाव है किसी वस्तु की मुझे 
न किसी चीज़ की आश्यकता है।
फिर भी कर्त्तव्य मान कर्म करने की 
सदा ही रहती मुझमें तत्परता है।।

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