अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं सङ्ग्रामं न करिष्यसि ।
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि ॥ ३३ ॥
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि ॥ ३३ ॥
किंतु यदि तुम युद्ध करने के स्वधर्म को सम्पन्न नहीं करते तो तुम्हें निश्चित रूप से अपने कर्त्तव्य की उपेक्षा करने का पाप लगेगा और तुम योद्धा के रूप में भी अपना यश खो दोगे।
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मोह के वशीभूत होकर अगर जो
क्षत्रिय धर्म का पालन नही करते।
तो स्वधर्म सम्पन्न नही करने वाले
अवश्य ही पाप के भागी हैं बनते।।
अपने कर्त्तव्य की अनदेखी करके
तुम कुछ भी शुभ नही पा सकते।
युद्ध से पलायन करनेवाले क्षत्रिय
योद्धा रूप में अपना यश खो देते।।
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