Saturday, October 22, 2016

अध्याय-3, श्लोक-12

इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः ।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुंक्ते स्तेन एव सः ॥ १२ ॥
जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले विभिन्न देवता यज्ञ सम्पन्न होने पर प्रसन्न होकर तुम्हारी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करेंगे। किंतु जो इन उपहारों को देवताओं को अर्पित किए बिना भोगता है, वह निश्चित रूप से चोर है।
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हमारी विभिन्न ज़रूरतों की ज़िम्मेदारी 
भगवान ने विभिन्न देवता को सौंपी है।
यज्ञ द्वारा देवताओं को करें प्रसन्न हम 
यह आज्ञा हमारे लिए निर्धारित की है।।

जो देवताओं को अर्पित किए बिना ही 
बस उनके दिए उपहारों को भोगता है।
बिना दिए लेनेवाले ऐसे व्यक्तियों को 
शास्त्र हमारा निश्चित ही चोर कहता है।।

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