Monday, October 10, 2016

अध्याय-2, श्लोक-24

अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च ।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥ २४ ॥
यह आत्मा अखण्डित तथा अघुलनशील है। इसे न तो जलाया जा सकता है, न ही सुखाया जा सकता है। यह शाश्वत, सर्वव्यापी, अविकारी, स्थिर तथा सदैव एक-सा रहनेवाला है।
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आत्मा कभी भी खंडित नही होता
न ही कोई द्रव इसे घुला सकता।
न तो अग्नि से है ये जलता और
न ही यह सुखाया ही जा सकता।।

यह शाश्वत है, हर जगह है व्याप्त
इसमें न कोई कल्मष न ही विकार।
स्वभाव में इसके स्थिरता इसलिए
सदा रहता है यह एक ही प्रकार।।

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