Saturday, October 29, 2016

अध्याय-3, श्लोक-33

सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि ।
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ॥ ३३ ॥
ज्ञानी पुरुष भी अपनी प्रकृति के अनुसार कार्य करता है, क्योंकि सभी प्राणी तीनों गुणों से प्राप्त अपनी प्रकृति का ही अनुसरण करते हैं। भला दमन से क्या हो सकता है?
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जितने भी प्राणी है इस जगत में
सब प्रकृति के गुणों के अधीन हैं।
सबको ही प्रभावित करते हैं ये
जो सत् , रज, तम गुण तीन हैं।।

ज्ञानी भी जिस गुण को अपनाते
उसी गुण के अनुसार कार्य करते।
जीवन में जब तक भक्तिभाव न हो
इसका निराकरण नही कर सकते।।

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