Friday, October 14, 2016

अध्याय-2, श्लोक-44

भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम्‌ ।
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥ ४४ ॥
जो लोग इन्द्रियभोग तथा भौतिक ऐश्वर्य के प्रति आसक्त होने से ऐसी वस्तुओं से मोहग्रस्त हो जाते हैं, उनके मनों में भगवान के प्रति भक्ति का दृढ़ निश्चय नही होता।
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जब मन में हो इन्द्रियभोग की इच्छा 
और आसक्ति हो भौतिक ऐश्वर्य से।
ऐसी लालसा रखनेवाले लोग फिर 
मोहित रहते हैं ऐसी ही वस्तुओं से।।



जिसके मन में बस भोग बसा हो तो 
फिर वह मन भगवान में कैसे लगाए।
मन उसका संशय ही करता प्रभु पर 
भोग बुद्धि उसे संसार में ही दौड़ाए।।

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