सहयज्ञाः प्रजाः सृष्टा पुरोवाचप्रजापतिः ।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् ॥ १० ॥
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् ॥ १० ॥
सृष्टि के प्रारम्भ में समस्त प्राणियों के स्वामी (प्रजापति) ने विष्णु के लिए यज्ञ सहित मनुष्यों तथा देवताओं की संततियों को रचा और उनसे कहा,"तुम इस यज्ञ से सुखी रहो क्योंकि इसके करने से तुम्हें सुखपूर्वक रहने तथा मुक्ति प्राप्त करने के लिए समस्त वांछित वस्तुएँ प्राप्त हो सकेंगी।"
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समस्त प्राणियों के स्वामी ब्रह्मा ही
सृष्टि की शुरुआत में सबको रचते हैं।
यज्ञ सहित मानव देवताओं को रचते
और रचकर उनसे ये बात वे कहते हैं।।
इस यज्ञ के साथ तुम सब सुखी रहो
इससे सुख-समृद्धि तुम्हें प्राप्त होगी।
भौतिक सुख के संग-संग इस यज्ञ से
मुक्ति की कामना की भी पूर्ति होगी।
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