Saturday, October 22, 2016

अध्याय-3, श्लोक-7

यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन ।
कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते ॥ ७ ॥
दूसरी ओर यदि कोई निष्ठावान व्यक्ति अपने मन के द्वारा कर्मइंद्रियों को वश में करने का प्रयत्न करता है और बिना किसी आसक्ति के कर्मयोग प्रारम्भ करता है, तो वह अति उत्कृष्ट है।
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हे अर्जुन!जब निष्ठा होती मन में तो 
मनुष्य का हर बंधन छूटने लगता है।
स्थिर मन के द्वारा इन्द्रियों को वह   
वश में करने की कोशिश करता है।।

बिना मोह ममता रखे मन में अपने 
जो कर्मयोग का आचरण करता है।
ऐसा अनासक्त मनुष्य ही वास्तव में 
सभी मनुष्यों में सबसे उत्तम होता है।।

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