Sunday, October 23, 2016

अध्याय-3, श्लोक-13

यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः ।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्‌ ॥ १३ ॥
भगवान के भक्त सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाते हैं, क्योंकि वे यज्ञ में अर्पित किए भोजन (प्रसाद) को ही खाते हैं। अन्य लोग, जो अपने इन्द्रियसुख के लिए भोजन बनाते हैं, निश्चित रूप से पाप खाते हैं।
********************************************
भगवान को पहले अर्पित करते हैं 
फिर उनका प्रसाद जब वे खाते हैं।
यज्ञ का उच्छिष्ट ग्रहण करनेवाले 
ऐसे भक्त हर पाप से बच जाते हैं।।

लेकिन जो लोग अर्पण नही करते 
बस भोग के लिए भोजन पकाते हैं।
ऐसे इन्द्रियसुख चाहने वाले व्यक्ति   
निश्चित रूप से सिर्फ़ पाप खाते हैं।।

No comments:

Post a Comment