Friday, October 14, 2016

अध्याय-2, श्लोक-45

त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन ।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्‌ ॥ ४५ ॥
वेदों में मुख्यतया प्रकृति के तीन गुणों का वर्णन हुआ है। हे अर्जुन! इन तीनों गुणों से ऊपर उठो। समस्त द्वैतों और लाभ तथा सुरक्षा की सारी चिंताओं से मुक्त होकर आत्म-परायण बनो।
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हे अर्जुन! वेदों में तो मुख्य रूप से 
प्रकृति के तीन गुणों का वर्णन है।
यह पथ उनके लिए जिन्हें चाहिए 
दुनिया के सुख और भौतिक धन है।।

तुम इन तीन गुणों से ऊपर उठकर 
सुख-दुःख के द्वंद से बाहर आओ।
सुरक्षा के भय से होकर मुक्त अब 
स्वयं को आत्म-परायण बनाओ।। 

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