वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् ।
कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम् ॥ २१ ॥
हे पार्थ! जो व्यक्ति यह जानता है कि आत्मा अविनाशी, अजन्मा, शाश्वत तथा अव्यय है, वह भला किसी को कैसे मार सकता है या मरवा सकता है।
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जब यह ज्ञात हो जाता मनुष्य को
कि आत्मा अजन्मा, अविनाशी है।
आदि काल से अनंत काल तक
हर युग, हर काल का ये वासी है।।
हे पार्थ! आत्मतत्त्व के ज्ञान के बाद
कैसे कोई किसी को मार सकता है?
कितना भी कर ले कोई प्रयास पर
क्या आत्मा को वो मरवा सकता है?
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