श्रीभगवानुवाच
लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ ।
ज्ञानयोगेन साङ्ख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम् ॥ ३ ॥
लोकेऽस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ ।
ज्ञानयोगेन साङ्ख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम् ॥ ३ ॥
श्रीभगवान ने कहा - हे निष्पाप अर्जुन! मैं पहले ही बता चुका हूँ कि आत्म-साक्षात्कार का प्रयत्न करने वाले दो प्रकार के पुरुष होते हैं। कुछ इसे ज्ञान द्वारा समझने का प्रयत्न करते हैं, तो कुछ भक्ति-मय सेवा के द्वारा।
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भगवान बोले कि जैसाकि मैंने तुम्हें
पहले ही इसके विषय में बताया है।
जो आत्म-साक्षात्कार का प्रयास करे
वह इन दो श्रेणियों में ही आया है।।
एक श्रेणी होती है ज्ञानियों की जो
ज्ञान के पथ का अनुसरण करते हैं।
दूसरी होती है भक्तों की श्रेणी जो
भक्तिमय सेवा से ही ध्येय पाते हैं।।
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