तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर ।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुषः ॥ १९ ॥
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुषः ॥ १९ ॥
अतः कर्मफल में आसक्त हुए बिना मनुष्य को अपना कर्त्तव्य समझकर कर्म करते रहना चाहिए क्योंकि अनासक्त होकर कर्म करने से उसे पर ब्रह्म (परम) की प्राप्ति होती है।
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इसलिए मनुष्य को कर्म फल की
चिंता में कभी नही पड़ना चाहिए।
जो कार्य हुए हैं उसे निर्धारित उन्हें
कर्त्तव्य समझकर करना चाहिए।।
अगर फल की चिंता ही नही होगी
तो मोह माया भी नही घेर पाएगा।
ऐसा अनासक्त व्यक्ति एकदिन
अवश्य ही परमात्मा को पाएगा।।
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