इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते ।
तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि ॥ ६७ ॥
तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि ॥ ६७ ॥
जिस प्रकार पानी में तैरती नाव को प्रचण्ड वायु दूर बहा ले जाती है उसी प्रकार विचरणशील इंद्रियों में से कोई एक जिस पर मन निरंतर लगा रहता है, मनुष्य की बुद्धि को हर लेती है।
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इंद्रियाँ सदा संसार में है विचरती
और मन को अपने पीछे है भगाती।
जिस पर मन निरंतर लगा रहता है
वही सबसे अधिक उत्पात मचाती।।
पानी में तैरती हुई नाव को वायु
अपने वेग से दूर बहा ले जाती है।
वैसे ही मन की कोई प्रिय इन्द्रिय
बुद्धि को हरकर उसे भटकाती है।।
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