एवं बुद्धेः परं बुद्धवा संस्तभ्यात्मानमात्मना ।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ॥ ४३ ॥
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ॥ ४३ ॥
इसप्रकार हे महाबाहु अर्जुन! अपने आपको भौतिक इंद्रियों, मन तथा बुद्धि से परे जान कर और मन को सावधान आध्यात्मिक बुद्धि (कृष्णभावनामृत) से स्थिर करके आध्यात्मिक शक्ति द्वारा इस काम रूपी दुर्जेय शत्रु को जीतो।
***************************************************
इसप्रकार हे महाबाहु अर्जुन! तुम
इंद्रियाँ,मन और बुद्धि से ऊपर हो।
इन सबके स्वामी आत्मा हो तुम
न कि इनके नियंत्रण के भीतर हो।।
अपनी बुद्धि द्वारा मन को स्थिर कर
चंचल इंद्रियों को तुम वश में करो।
अपने संयम के द्वारा तुम इस दुर्जेय
महापापी शत्रु काम को परास्त करो।।
******कर्मयोग नाम का तीसरा अध्याय सम्पूर्ण हुआ*******
******कर्मयोग नाम का तीसरा अध्याय सम्पूर्ण हुआ*******
No comments:
Post a Comment