यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः ।
वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥ ४२ ॥
कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् ।
क्रियाविश्लेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति ॥ ४३ ॥
अल्पज्ञानी मनुष्य वेदों के उन अलंकारिक शब्दों के प्रति अत्यधिक आसक्त रहते हैं, जो स्वर्ग की प्राप्ति, अच्छे जन्म, शक्ति इत्यादि के लिए विविध सकाम कर्म करने की संस्तुति करते हैं। इन्द्रियतृप्ति तथा ऐश्वर्यमय जीवन की अभिलाषा के कारण वे कहते हैं कि इससे बढ़कर और कुछ नहीं है।
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वेदों के कर्मकांड भाग ने दिए हैं
वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥ ४२ ॥
कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् ।
क्रियाविश्लेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति ॥ ४३ ॥
अल्पज्ञानी मनुष्य वेदों के उन अलंकारिक शब्दों के प्रति अत्यधिक आसक्त रहते हैं, जो स्वर्ग की प्राप्ति, अच्छे जन्म, शक्ति इत्यादि के लिए विविध सकाम कर्म करने की संस्तुति करते हैं। इन्द्रियतृप्ति तथा ऐश्वर्यमय जीवन की अभिलाषा के कारण वे कहते हैं कि इससे बढ़कर और कुछ नहीं है।
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वेदों के कर्मकांड भाग ने दिए हैं
सकाम कर्म के कितने ही विधान।
फँस जाते हैं उन विभागों में ही वे
जिनको होता है न अधिक ज्ञान।।
स्वर्ग, उच्च कुल और वैभव हेतु वेद
अनेक विधियों का वर्णन करते हैं।
वेदों की अलंकारिक भाषा में फँस
लोग कर्म-फल में आसक्त रहते हैं।।
जिन्हें चाहिए बस इंद्रियों का भोग
उनको लगता कि यही मार्ग सही है।
ऐश्वर्य की कामना रखने वाले कहते
इससे बढ़कर तो कुछ और नही हैं।।
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