Thursday, October 27, 2016

अध्याय-3, श्लोक-30

मयि सर्वाणि कर्माणि सन्नयस्याध्यात्मचेतसा ।
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ॥ ३० ॥
अतः हे अर्जुन! अपने सारे कार्यों को मुझमें समर्पित करके मेरे पूर्ण ज्ञान से युक्त होकर, लाभ की आकांक्षा से रहित, स्वामित्व के किसी दावे के बिना तथा आलस्य से रहित होकर युद्ध करो।
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हे अर्जुन! जो भी कर्त्तव्य कर्म हैं तेरे 
सबको ही मुझमें समर्पित कर दो।
मन को जग के भटकन से निकाल 
उसे पूर्ण आत्म-ज्ञान से तुम भर दो।।

लाभ की कोई इच्छा न रखो मन में 
न मोह को हृदय में अपने बसने दो।
अपने संताप का पूर्ण त्याग कर अब 
दृढ़ता से आगे बढ़ो और युद्ध करो।।

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