Friday, October 7, 2016

अध्याय-2, श्लोक-20

न जायते म्रियते वा कदाचि-न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो-न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥ २० ॥ 
आत्मा के लिए किसी भी काल में न तो जन्म है न मृत्यु। वह न तो कभी जन्मा है, न जन्म लेता है और न जन्म लेगा। वह अजन्मा, नित्य, शाश्वत तथा पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर वह मारा नही जाता।
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कभी भी आत्मा का जन्म हुआ न 
न ही कभी भी मृत्यु हुई इसकी।
किसी काल में अपवाद न इसका 
बात भूत, भविष्य या वर्तमान की।।

अजन्मा, नित्य, शाश्वत व पुरातन 
आत्मा के है ये स्वभाविक लक्षण।
मारा जाए जब  ये क्षणिक शरीर 
तब  भी आत्मा रहता है अक्षुण्ण ।।

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